Class 10th History Subjective & Objective Question : बिहार बोर्ड 10वीं के विद्यार्थियों के लिए आज के आर्टिकल में दसवीं इतिहास का महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव क्वेश्चन बताया गया है आज किस आर्टिकल में दसवीं इतिहास का पाठ 5 होगा इससे पहले दसवीं इतिहास का और भी सब्जेक्टिव क्वेश्चन को अलग-अलग पाठ में अपलोड किया गया है जिसे जाकर आप इस वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं। यदि आप 10वीं की वार्षिक परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो इसे मैं आप फ्रांसीसी से लेकर राष्ट्रवाद के उदय के कर्म और भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन अन्य सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को जरूर पढ़ें जिससे आप वार्षिक परीक्षा में बेहतर अंक ला सकते हैं।
Class 10th History Subjective Question
प्रश्न 1. फ्रांसीसी शोषण के साथ-साथ उसके द्वारा किये गये सकारात्मक कार्यों की समीक्षा करें।
उत्तर- फ्रांस द्वारा औपनिवेशिक शोषण एवं उसका प्रभाव फ्रांसीसियों द्वारा शोषण की शुरुआत व्यापारिक नगरों एवं बंदरगाहों से हुई। शीघ्र ही उन्होंने अपने शोषण के दायरे में भीतरी ग्रामीण क्षेत्र को भी खींच लिया। यह पूरा क्षेत्र नदी-घाटियों का क्षेत्र होने के कारण काफी उपजाऊ था। तोंकिन में लाल घाटी क्षेत्र, कंबोडिया में मेकांग नदी क्षेत्र, कोचीन चीन में मेकांग का डेल्टा क्षेत्र कृषि के लिए, विशेषकर धान की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त था। कृषि के अलावा चीन से
सटे क्षेत्रों में कोयला, टिन, जस्ता, टंगस्टन जैसे खनिजों का दोहन किया गया। इस क्षेत्र के व्यवस्थित शोषण के लिए फ्रांसीसियों ने कृषिकार्य को प्रोत्साहन दिया। कृषि-उत्पादकता बढ़ाने के लिए नहरों एवं जल निकासी का समुचित प्रबंध किया। कृषि भूमि के विस्तार के लिए दलदली भूमि, जंगलों को कृषियोग्य बनाया गया। इन कार्यों के परिणामस्वरूप 1931 ई० तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा चावल-निर्यातक बन गया।
कृषि-उत्पादन में वृद्धि से आम लोगों को फायदा होना चाहिए था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। फ्रांसीसी शोषणमूलक उपायों से कृषि उत्पादन का अधिकांश लाभ स्वयं हड़प जाते थे। रबड़ बागानों में मजदूरों के शोषण के लिए उनसे ‘एकतरफा अनुबंध व्यवस्था’ पर काम लिया जाता था। यह एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी जिसमें मजदूरों को कोई अधिकार नहीं था।
प्रश्न 2. हिन्द-चीन के गृहयुद्ध का वर्णन करें।
उत्तर :- हिन्द-चीन में उथल-पुथल को जेनेवा समझौता ने तात्कालिक रूप से कुछ शांति अवश्य दी, परन्तु तुरंत ही हिन्द-चीन में उथल-पुथल आरंभ हो गई, क्योंकि उत्तरी वियतनाम में हो ची मिन्ह की सरकार सुदृढ़ हो गयी और पूरे वियतनाम के एकीकरण पर विचार करने लगी परन्तु दक्षिणी वियतनाम की स्थिति इसके विपरीत थी क्योंकि बाओदाई सरकार का संचालन न्यो-दिन्ह दियम के हाथों में था, जो अमेरिकापरस्त था। हालाँकि न्यो-दिन्ह-दियम एक कुशल प्रशासक था, परन्तु फ्रांसीसी सेना के हटते ही दक्षिणी वियतनाम में गृहयुद्ध की स्थिति बनी तो बाओदाई सरकार का तख्ता पलटकर स्वयं शासक बन गया। इन दिनों दक्षिणी वियतनाम में साम्यवादियों के साथ-साथ तीनों सौतेला भाईयों ने लाओस पर अपनी राजनीतिक पकड़ के लिए अलग-अलग रास्ते अपना लिए थे। इनमें पहला राजकुमार सुवन्न फूमा तटस्थतावादी था, दूसरा राजकुमार सुफन्न बोंग जो पाथेट लाओ नाम से प्रसिद्ध था। अपना सैन्य संगठन बनाकर उत्तरी वियतनाम की तरह लाओस में साम्यवादी व्यवस्था लाना चाहता था, तीसरा राजकुमार जेनरल फूमी नौसवान दक्षिणपंथी था। इन तीनों के मध्य वर्चस्व की लड़ाई ही लाओस की अस्थिरता का कारण थी। सोवियत संघ और अमेरिका द्वारा क्रमशः पाथेट लाओ और फूमी नौसवान को समर्थन दिए जाने से स्थिति और उलझ गई।
प्रश्न 3. हिन्द-चीन में राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें
उत्तर :- हिन्द-चीन में राष्ट्रवाद का उदय एवं विकास हिन्द-चीन में फ्रांस के खिलाफ विरोध के स्वर साम्राज्य स्थापना के समय से ही उठ रहे थे, किन्तु बीसवीं सदी के प्रारम्भ से यह तीव्र हो गया। 1903 ई० में फान-बोई-चाऊ ने लुई-तान-होई नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। फान ने ‘हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम’ लिखकर राष्ट्रीयता की भावना को जगाया। कुआंग दें इस संगठन के एक प्रसिद्ध नेता थे ।
- 1905 ई० में एशियाई देश जापान द्वारा रूस को पराजित किया जाना हिन्द-चीनियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। साथ ही, रूसो एवं मांटेस्क्यू जैसे फ्रांसीसी विचारकों के स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व संबंधी विचारों ने भी इन्हें .
प्रश्न 4. राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं परिणामों की चर्चा करें।
- उत्तर- राष्ट्रवाद के उदय एवं विकास के प्रभावी कारकों एवं शक्तियों की विवेचना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है।
- (i) सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन – 19वीं शताब्दी के धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रवाद उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन तथा थियोसोफिकल सोसाइटी जैसी संस्थाओं ने हिन्दू धर्म में प्रचलित बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया । अंधविश्वास, धार्मिक कुरीतियाँ तथा सामाजिक कुप्रथाएँ, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा एवं बालिका हत्या जैसी समस्याओं के समाधान के लिए जनमत तैयार करने में इन संस्थाओं ने सराहनीय कार्य किया। परिणामस्वरूप, सुधार आंदोलनों ने राष्ट्रीयता की भावना जनमानस में कूट-कूटकर भर दी।
- (ii) आर्थिक शोषण-भारत में अंग्रेजों ने जो आर्थिक नीतियाँ अपनायीं इसके परिणामस्वरूप आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय हुआ। ब्रिटिश आर्थिक नीति के तहत भारत में भू-राजस्व में अत्यधिक वृद्धि हुई। इस व्यवस्था का विरोध एक तरफ किसानों ने किया तो दूसरी तरफ पुराने जमींदारों ने भी किया, क्योंकि स्थायी बंदोबस्त में ‘सूर्यास्त कानून’ के कारण पुराने जमींदारों द्वारा एक नियत समय पर भू-राजस्व जमा नहीं करने पर उनकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी। कृषि के व्यावसायीकरण के कारण किसानों का दोहरा शोषण हुआ। एक ओर उनसे अधिकतम राजस्व वसूला गया तो दूसरी ओर इस राजस्व को अदा करने के लिए महाजनों के ऋण जाल में फँसते चले गए।
- (iii) तात्कालिक कारण- लॉर्ड लिटन का प्रतिक्रियावादी शासन राष्ट्रवाद का तात्कालिक कारण बना,
जैसे-
- (a) लिटन ने 1876 में सिविल सेवा परीक्षा की अधिकतम आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी। इससे भारतीयों के लिए इस नौकरी के दरवाजे लगभग बंद हो गए।
- (b) 1877 ई० में भारत में भयंकर अकाल पड़ा था। अकाल में लोगों को बचाने के बजाए खर्चीले ‘दिल्ली दरबार’ का आयोजन किया गया, जिसमें विक्टोरिया को ‘कैंसर-ए-हिन्द’ की उपाधि दी गई।
प्रश्न 5. प्रथम विश्वेयुद्ध का भारतीय राष्ट्राय आन्दालन के एन कुमासबयों अ की विवेचना करें।
उत्तर-. प्रथम विश्वयुद्ध के कारण और परिणाम का भारत से अंतर्संबंध-
(i) प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों के साथ भारत का अंतर्संबंध प्रथम
(1) विश्वयुद्ध भारतसहित अन्य एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में स्थापित उपनिवेशों को सुरक्षित रखने के लिए लड़ा गया। भारत, ब्रिटेन का सबसे महत्त्वपूर्ण उपनिवेश था तथा भारत को प्रथम विश्वयुद्ध की स्थिति में भी सुरक्षित रखना बहुत जरूरी था, युद्ध शुरू होने के पश्चात् ब्रिटेन की सरकार ने घोषणा की कि ब्रिटेन के शासन करने का उद्देश्य यहाँ एक जिम्मेवार सरकार की स्थापना करना है तथा स्वराज की स्थापना भारत जैसे देश में लागू किया जाएगा। सरकार ने 1916 में आयात शुल्क लगाया ताकि भारत में वस्त्र उद्योग का विकास हो सके ।
(ii) प्रथम विश्वयुद्ध के समय का भारतीय घटनाक्रम इस समय की सभी घटनाएँ युद्ध से उत्पन्न परिस्थिति की देन थीं। तिलक एवं गाँधीजी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार को सहयोग किया, इस उम्मीद से कि युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार इनके स्वराज की माँग को मान लेगी, परन्तु इनका भ्रम शीघ्र ही टूट गया। 1915-17 ई० में एनी बेसेन्ट और तिलक ने आयरलैण्ड से प्रेरित होकर भारत में भी होमरूल आंदोलन आरंभ किया। इसका उद्देश्य वैधानिक उपायों द्वारा स्वशासन प्राप्त करना था। मार्च, 1916 में तिलक ने महाराष्ट्र में होमरूल लीग की स्थापना की जिसका केन्द्र पूना में था। युद्धकाल में ही क्रांतिकारी आंदोलन का विकास भारत एवं विदेशों में हुआ। भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का मुख्य केन्द्र बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब तथा संपूर्ण उत्तरी भारत था। विदेशों में यह अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीयों द्वारा चलाया गया। 1913 ई० में लाला हरदयाल ने ‘गदर पार्टी’ की स्थापना सेन फ्रांसिस्कों ने किया। इन्होंने ‘हिन्दुस्तान गदर’ समाचार-पत्र के माध्यम से ब्रिटिश विरोधी विचारों तथा क्रांतिकारी दर्शन का प्रसारण किया । 1916 में दो महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ घटी, प्रथम राजनीतिक घटना काँग्रेस के दोनों दल गरम दल तथा नरम दल मिलकर एक हो गए तथा दूसरी घटना 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन द्वारा काँग्रेस एवं मुस्लिम लीग के बीच समझौता हुआ । भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गाँधीजी का अभ्युदय युद्धकाल के दौरान हुआ । इसी काल में उन्होंने चम्पारण, खेड़ा और अहमदाबाद जैसे तीन सफल सत्याग्रहों का संचालन किया ।
10th History Subjective & Objective Question
प्रश्न 6. भारत में मजदूर आन्दोलन के विकास का वर्णन करें।
उत्तर- 19वीं शताब्दी की शुरुआत में राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों ने मजदूर वर्ग के हितों की शक्तिशाली पूंजीपतियों से रक्षा के लिए कानून बनाने की वकालत शुरू कर दी। स्वदेशी आंदोलन का भी प्रभाव मजदूर आंदोलन पर पड़ा तथा इसका संदेश पूरे भारत में फैला। इसमें अहमदाबाद का मजदूर आंदोलन प्रमुख था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी फैली, अहमदाबाद में पहले से ही श्रमिकों की कमी थी। प्लेग फैलने के बाद अधिकांश श्रमिक शहर छोड़कर गाँव जाने लगे। श्रमिकोंको शहर में रोकने के लिए मिल-मालिकों ने ‘प्लेग बोनस’ देने की घोषणा की जो साधारण मजदूरी का 50 प्रतिशत होता था, लेकिन महामारी खत्म होते ही बोनस देना बंद कर दिया, जिसका श्रमिकों ने विरोध किया। गाँधीजी को भी आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला।
- गाँधीजी ने श्रमिक और मिल-मालिकों के बीच मध्यस्थता बोर्ड द्वारा समझौता कराने का प्रयास किया। गाँधीजी इस बोर्ड में श्रमिकों के प्रतिनिधि बने, परन्तु अचानक मिल-मालिक मध्यस्थता से पीछे हटते हुए मिल में तालाबंदी की घोषणा कर दी। गाँधीजी ने अहमदाबाद के मजदूरों को 50% के स्थान पर 35% मजदूरी में बढ़ोतरी की माँग करने की सलाह दी, साथ ही यह भी कहा कि जब तक उनकी मजदूरी में 35% की वृद्धि नहीं होती तब तक वे शांतिपूर्ण सत्याग्रह करते रहेंगे। जब तक कोई समझौता नहीं हो जाता, गाँधीजी भूख हड़ताल पर चले गये। अंततः, मिल-मालिकों ने गाँधीजी के प्रस्ताव को मानते हुए मजदूरों के पक्ष में 35% की वृद्धि का निर्णय लिया। इस प्रकार यह आंदोलन सफल हुआ ।
- 1920 के बाद साम्यवादी प्रभाव के कारण मजदूर संघ आंदोलन का स्वरूप बदलने लगा। इसमें कुछ क्रांतिकारी और सैनिक भावना आ गई। 1923 में गिरनी कामगार यूनियन के नेतृत्व में बंबई टेक्सटाइल मिल में 6 माह लंबी हड़ताल का आयोजन किया गया। उग्रवादी प्रभाव में आने के कारण सरकार ने मजदूर संघ आंदोलन पर रोक लगाने के लिए वैधानिक कानूनों का सहारा लिया। इसे रोकने के लिए सरकार ने श्रमिक विवाद अधिनियम, 1929 तथा नागरिक सुरक्षा अधिनियम,
- 1929बनाए ।1930 में गांधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन में श्रमिकों ने सक्रिय रूप से भाग लिया परन्तु 1931 के बाद इसमें कुछ कमी आ गई। इसका कारण था 1931 ई० में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन काँग्रेस में विभाजन।
- एम० एन० जोशी, बी० बी० गिरि और मृणाल कांति बोस आदि ने एटक से अलग होकर भारतीय ट्रेड, यूनियन संघ (Indian Trade Union Federation) की स्थापना की। इसके बाद श्रमिक आंदोलन में नेहरू एवं सुभाषचंद्र बोस जैसे वामपंथी राष्ट्रवादियों का प्रभाव
रहा । मेरठ षड्यंत्र केस में सरकार ने 31 श्रमिक नेताओं को बंदी बनाकर मेरठ में उनपर मुकदमा चलाया। इनपर आरोप था कि ये सम्राट को प्रभुसत्ता से वंचित करना चाहता थे। गिरफ्तार नेताओं में मुजफ्फर अहमद, एस० एन० डांगे, फिलिप स्प्राट, ब्रेन बेडली तथा शौकत उस्मानी प्रमुख थे।
प्रश्न 7. सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों की विवेचना करें ।
अथवा, सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन करें।
अथवा, सविनय अवज्ञा आंदोलन के किन्हीं पाँच कारणों की व्याख्या करें।
उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
10th History Subjective Question : (i) नेहरू रिपोर्ट साइमन कमीशन का बहिष्कार करने पर भारत सचिव लॉर्ड बर्कन हेड ने भारतीयों को संविधान बनाने की चुनौती दी। उसने कहा कि कमीशन का बहिष्कार करना कोई समझदारी नहीं है, क्योंकि भारतीय स्वयं कोई संविधान नहीं बना सकते। काँग्रेस ने इस चुनौती को स्वीकार किया। 19 मई, 1928 को पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में भारतीय संविधान का आधार निश्चित करने के लिए एक समिति नियुक्त की गई। नेहरू रिपोर्ट में ‘डोमिनियन् स्टेटस’ को पहला लक्ष्य एवं ‘पूर्ण स्वराज’ को दूसरा लक्ष्य घोषित किया गया। यह रिपोर्ट स्वीकृत नहीं हो सकी। मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने सांप्रदायिकता को फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अतः गाँधी ने इससे निबटने के लिए सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
(ii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव- 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा पड़ा। इसके प्रभाव के कारण मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हुई, भारत का निर्यात कम हो गया, अनेक कारखाने बंद हो गए, पूँजीपतियों की हालत खराब हो गई। किसान तो पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे थे। परन्तु, इस परिस्थिति में भी अंग्रेजों ने भारत से धन का निष्कासन बंद नहीं किया। इस कारण पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वातावरण तैयार होने लगा जिसकी परिणति सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में हुई।
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