Bihar Board 10th History Subjective Question : बिहार बोर्ड 10वीं के विद्यार्थियों के लिए इस आर्टिकल में दसवीं इतिहास का महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव क्वेश्चन बताया गया है। यदि आप 10वीं की वार्षिक परीक्षा में सम्मिलित होंगे तो आप इस आर्टिकल के नीचे दिए गए दसवीं इतिहास का सभी सब्जेक्टिव को पढ़ सकते हैं जिससे आप 10वीं की वार्षिक परीक्षा में बेहतर अंक का सकते हैं इससे पहले दसवीं इतिहास का और भी सब्जेक्टिव इस वेबसाइट पर दिया गया है जिसे आप जाकर पढ़ सकते हैं और यह बिहार बोर्ड 10वीं इतिहास का सब्जेक्टिव का पाठ 4 होने वाली है आई इतिहास का सभी सब्जेक्टिव को पढ़ते हैं ।।
Bihar Board 10th History Subjective Question
प्रश्न 1. लेनिन के जीवन एवं उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर- रूस में बोल्शेविक क्रांति का प्रणेता लेनिन था। उसका जन्म 10 अप्रैल, 1870 को वोल्गा नदी के किनारे सिमब्रस्क नामक गाँव में हुआ था। वह जारशाही का विरोधी और मार्क्सवाद का समर्थक था। उसने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और बोल्शेविक दल का नेता बन गया। 1905 की रूसी क्रांति में उसने भाग लिया था। मार्च 1917 में स्विट्जरलैंड से रूस वापस आकर उसने बोल्शेविक दल का नेतृत्व ग्रहण किया। ‘अप्रैल थीसिस’ में उसने बोल्शेविक दल के उद्देश्य और कार्यक्रम स्पष्ट किए। लेनिन ने केरेन्सकी की सत्ता समाप्त कर बोल्शेविकों की सरकार स्थापित की। इस प्रकार, रूस में सर्वहारा वर्ग की सरकार बनी। सत्ता की बागडोर सँभालने के बाद लेनिन ने रूस के नवनिर्माण का कार्य आरंभ किया। 1924 में उसकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 2. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर- रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित थे
- (i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन जार निकोलस द्वितीय कठोर एवं दमनात्मक नीति का संरक्षक था। वह राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। उसे केवल अभिजात्य वर्ग और उच्च पदाधिकारियों का ही समर्थन प्राप्त था । इसकी पत्नी भी घोर प्रतिक्रियावादी औरत थी। उस समय रासपुटीन की इच्छा ही कानून थी। वह नियुक्तियों, पदोन्नतियों तथा शासन के अन्य कार्यों में हस्तक्षेप करता था। अतः गलत सलाहकार के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गई और जनता की स्थिति दयनीत होती चली गई।
- (ii) कृषकों की दयनीय स्थिति यद्यपि 1861 में कृषि दासत्व को समाप्त कर दिया गया था, परन्तु किसानों की स्थिति में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। रूस की कुल जनसंख्या का एक-तिहाई भाग भूमिहीन था जिन्हें जमींदारों की भूमि पर काम करना पड़ता था। इन कृषकों को कई तरह के करों का भुगतान करना पड़ता था। इनके पास पूँजी का अभाव था। ऐसी परिस्थिति में किसानों के पास क्रांति ही अंतिम विकल्प थी।
- (iii) मजदूरों की दयनीय स्थिति रूस के मजदूरों का काम एवं मजदूरी के आधार पर अधिकतम शोषण किया जाता था। मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे। ये अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल नहीं कर सकते थे और न ही ‘मजदूर संघ’ बना सकते थे। रूसी मजदूर पूँजीवादी व्यवस्था तथा जारशाही की निरंकुशता को समाप्त कर ‘सर्वहारा वर्ग’ का शासन स्थापित करना चाहते थे ।
- (iv) औद्योगिकीकरण की समस्या रूस में राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ती गई। विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। इस कारण लोगों में असंतोष व्याप्त था। (v) रूसीकरण की नीति रूस में कई जातियाँ, कई धर्म तथा कई भाषाएँ प्रचलित थे। यहाँ स्लाव जाति सबसे महत्त्वपूर्ण थी। जार निकोलस द्वितीय ने रूसीकरण के लिए “एक जार एक धर्म” का नारा दिया तथा गैर-रूसी जनता का दमन किया। जार की इस नीति के खिलाफ गैर-रूसी जनता में असंतोष फैला और वे जारशाही के विरुद्ध हो गये ।
- (vi) जापान से पराजय तथा 1905 की क्रांति 1905 के रूस-जापान युद्ध में रूस की पराजय एशिया के एक छोटे देश से हो गई। इस पराजय के कारण रूस में 1905 में क्रांति हो गई। इस क्रांति ने अंततः 1917 में बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया ।
प्रश्न 3. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें। अथवा, रूसी क्रांति का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर ;- रूसी क्रांति का प्रभाव रूसी क्रांति के प्रभाव को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(क) सोवियत संघ,
(ख) विश्व ।
(ग) सोवियत संघ पर अक्टूबर क्रांति के निम्न प्रभाव पड़े-
- (i) स्वेच्छाचारी शासन का अंत जारशाही एवं कुलीनों के स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर दिया गया। तत्पश्चात् एक नवीन संविधान का निर्माण किया गया। जिसके अनुसार वहाँ जनता के शासन की स्थापना हुई।
- (ii) सर्वहारा वर्ग का शासन नए संविधान द्वारा मजदूरों को वोट देने का अधिकार मिला। देश की सम्पूर्ण संपत्ति राष्ट्रीय संपत्ति घोषित की गई। उत्पादन के साधनों पर मजदूरों का नियंत्रण हो गया। उत्पादन-व्यवस्था में निजी मुनाफे की भावना को निकाल दिया गया।
- (iii) साम्यवादी शासन की स्थापना अक्टूबर क्रांति द्वारा सोवियत संघ में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई।
- (iv) नवीन सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का विकास सोवियत संघ में समाज में व्याप्त घोर असमानताएँ समाप्त हो गईं। समाज वर्गविहीन हो गया। अब समाज में एक ही वर्ग रहा और वह था- साम्यवादी नागरिक । काम के अधिकार को एक संवैधानिक अधिकार बना दिया गया। प्रत्येक व्यक्ति को काम देना समाज एवं राज्य का कर्त्तव्य समझा गया।
- (v) गैर-रूसी राष्ट्रों का विलयन जिन गैर-रूसी राष्ट्रों पर जारशाही ने सत्ता स्थापित की थी वे सभी क्रांति के बाद गणराज्यों के रूप में सोवियत संघ के अंग बन गए।
- (vi) सभी जातियों को समानता का अधिकार सोवियत संघ में सम्मिलित सभी जातियों की समानता को संविधान में कानूनी रूप दिया गया। उनकी भाषा तथा संस्कृति का भी विकास हुआ।
(छ) हमी कांति का विश्व पर प्रभाव पड़ा अक्टूबर क्रांति के विश्व पर पड़े प्रभाव को सकारात्मक एवं नकारात्मक दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।
(1929-30 की विश्वव्यापी मंदी का सफलतापूर्वक सामना एवं द्वितीय विश्वयुद्ध से विश्व शक्ति के रूप में अपने को स्थापित करने से विश्व के अन्य देशों चीन, वियतनाम, युगोस्लाविया इत्यादि में साम्यवाद का प्रसार हुआ ।
(B) राज्यनियोजित अर्थव्यवस्था, पंचवर्षीय योजना का विकास हुआ।
(ii) सोवियत संघ में किसानों एवं मजदूरों की सरकार स्थापित होने से सम्पूर्ण विश्व में किसान एवं मजदूरों के महत्त्व में वृद्धि हुई।
(1) सोवियत संघ एवं विश्व के कई देशों में साम्यवादी शासन स्थापित होने
पर पूँजीवादी देशों (अमेरिका एवं पश्चिमी यूरोप के देश) का तीव्र विरोध हुआ। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व पर 1990 तक (सोवियत संघ के विघटन तक) शीतयुद्ध की काली छाया छाई रही।
(2) सम्पूर्ण विश्व में पूँजीपतियों एवं मजदूरों के मध्य संघर्ष कटु होने लगा।
Bihar Board 10th History Important Subjective Question
प्रश्न 4. यूरोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें ।
उत्तर :- काल्पनिक (यूरोपियन समाजवादी समाजवादी विचारधारा की शुरुआत काल्पनिक समाजवादी विचारधारा के लोगों द्वारा शुरू की गई। सेंट साइमन फ्रांसीसी समाजवाद के असली संस्थापक थे। इन्होंने ‘द न्यू क्रिश्चियनिटी’ (1825) में अपने समाजवादी विचारों का प्रतिपादन किया। साइमन का विचार था कि समाज का वैज्ञानिक ढंग से पुनर्गठन हो, श्रमिकों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना चाहिए, प्रतियोगिता समाप्त होनी चाहिए, उत्पादन घनी वर्ग के हाथ में नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसका सावधानी से नियंत्रण किया जाना चाहिए जिससे निर्धन श्रमिकों को लाभ हो सके। उसने घोषित किया, “प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार कार्य तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार पुरस्कार मिलना चाहिए।”
चार्ल्स फुरियेर ने असंख्य निर्धन श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए सहकारी समुदायों को संगठित करने की योजना बनाई। इस प्रकार, सेंट साइमन और चार्ल्स फुरियेर दोनों यह मानते थे कि मजदूरों का कल्याण तभी सम्भव है जब पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा स्थापित नियंत्रण समाप्त हो जाए। परन्तु, इन दोनों की विचारधारा अव्यावहारिक सिद्ध हुई।
1840 ई, के बाद लाई बता फ्रांस का सबसे प्रभावशाली काल्पनिक समाजवादी विचारक और नेता था। उसने आर्थिक क्षेत्र में वैयक्तिक स्वतंत्रता के सिद्धांत का विरोध किया और राज्य से मजदूर के काम के अधिकार और उस अधिकार की प्राप्ति के लिए ‘राष्ट्रीय कारखानों’ की माँग की। लुई ब्लों का विश्वास था कि क्रांतिकारी षड्यंत्र के जरिये सत्ता पर अधिकार कर समाजवाद लाया जा सकता था विश्वास कि है। लुई सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए ब्लॉ का आर्थिक सुधारों पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है। लुई ब्लों के सुधार कार्यक्रम अधिक व्यावहारिक थे।
फ्रांस से बाहर ब्रिटेन में रॉबर्ट ओवेन, विलियम धाम्पसन टॉमस हॉडस्किन, जान से जैसे काल्पनिक समाजवादी विचारक थे। इसने स्कॉटलैण्ड के न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक फैक्ट्री की स्थापना की थी। उसने अपनी फैक्ट्री में अनेक सुधार कर अपने मजदूरों की हालत सुधारने का प्रयास किया। उसने मजदूरों के काम के घंटों में कमी की तथा उन्हें उचित वेतन दिया। मजदूरों के लिए साफ-सुथरे मकान बनवाये और आमोद-प्रमोद के केन्द्र स्थापित किये।
निष्कर्षतः उपर्युक्त सभी काल्पनिक समाजवादी विचारक आरंभिक चिंतक थे। इन्होंने वर्ग-संघर्ष के बदले वर्ग-समन्वय पर बल दिया जो समाजवाद का आदर्शवादी दृष्टिकोण था। इन्होंने पूँजी और श्रम के बीच के संबंधों की समस्या।
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