बिहार बोर्ड 10वीं संस्कृत सब्जेक्टिव : Class 10th Sanskrit Subjective Question

10th Sanskrit Subjective Question : बिहार बोर्ड 10वीं वार्षिक परीक्षा के लिए संस्कृत का सभी महत्वपूर्ण सब्जेक्टिव क्वेश्चन को इस आर्टिकल में बताया गया है यदि आप भी दसवीं की वार्षिक परीक्षा में सम्मिलित होने वाले हैं तो ऐसे में आप इस आर्टिकल में दिए गए 10वीं संस्कृत सब्जेक्टिव का वस्तुनिष्ठ प्रश्न को जरूर पढ़ें जिससे आप 10वीं की परीक्षा में संस्कृत विषय में बेहतर अंक का सकते हैं।

Class 10th Sanskrit Subjective Question

1 . तिरुमलाम्बा किसकी रानी थी और उसने किस प्रकार के काव्य की रचना की थी?

उत्तर-तिरुमलाम्बा अच्युत राय की पत्नी थी। उसने ‘वरदाम्बिका परिणय’ नामक चम्पूकाव्य की रचना की। उसमें संस्कृत गद्य की समस्त पदावलियां ललित पद विन्यास से सुंदर हैं।

2. उपनिषद् में नारियों के योगदान का उल्लेख करें।

उत्तर-वृहदारण्यकोपनिषद् में याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी की दार्शनिक रुचि का वर्णन है। जनक की सभा में गार्गी प्रसिद्ध थी।

3 . संस्कृत में पण्डिता क्षमाराव के योगदान का वर्णन करें।

उत्तर -संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय की लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव अति प्रसिद्ध हैं। शंकरचरितम् उनकी अनुपम रचना है। गाँधी दर्शन से प्रभावित होकर उन्होंने सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, ग्रामज्योति आदि रचनाएँ की हैं।

4 संस्कृत साहित्य के संवर्धन में महिलाओं के योगदान का वर्णन करें।

उत्तर -वैदिक काल से महिलाओं ने संस्कृत साहित्य की रचना एवं संरक्षण में काफी योगदान दिया है। ऋग्वेद में चौबीस और अथर्ववेद में पाँच महिलाओं का योगदान है। यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी और वागाम्भृणी मंत्रों की दर्शिकाएँ थीं। गङ्गादेवी, तिरुमलाम्बा, शीलाभट्टारिका, देवकुमारिका आदि दक्षिण की महिलाओं ने भी साहित्य की रचना में योगदान दिया है। पंडिता क्षमाराव, पुष्पादीक्षित, वनमाला मवालकर आदि जैसी अनेक आधुनिक महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया है। इस प्रकार, भारत में हमेशा संस्कृतसाहित्य में महिलाओं का योगदान रहा है।

5. विजयनगर राज्य में संस्कृत भाषा की क्या स्थिति थी ? तीन वाक्यों मे उत्तर दें।

उत्तर-विजयनगर में सम्राट् संस्कृत भाषा के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास सर्वविदित है। उनके अन्तःपुर में भी संस्कृत रचना में निष्णात रानियाँ थीं। महारानी विजयभट्टारिका ने ‘विजयाङ्का’ की रचना की।

6. ‘संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः’ पाठ से हमें क्या संदेश मिलता है ?

उत्तर -इस पाठ के द्वारा संस्कृत साहित्य के विकास में महिलाओं के योगदान के बारे में ज्ञात होता है। वैदिक युग से आधुनिक समय तक ऋषिकाएँ, कवयित्री, लेखिकाएँ संस्कृतसाहित्य के संवर्धन में अतुलनीय सहभागिता प्रदान करती रही हैं। संस्कृत लेखिकाओं की सुदीर्घ परम्परा है। संस्कृत भाषा के उन्नयन एवं पल्लवन में पुरुषों के समतुल्य महिलाएँ भी चलती रही हैं।

7. ‘संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः पाठ में लेखक ने क्या विचार व्यक्त किए हैं ?

उत्तर – ‘संस्कृतसाहित्ये लेखिकाः’ पाठ में लेखक का विचार है कि प्राचीन काल से लेकर आज तक महिलाओं ने संस्कृत साहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दक्षिण भारत की महान साहित्यकार महिलाओं ने भी संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया ।

8. शास्त्र-लेखन एवं रचना-संरक्षण में वैदिककालीन महिलाओं के योगदानों की चर्चा करें।

उत्तर- वैदिककाल में शास्त्र-लेखन एवं रचना-संरक्षण में पुरुषों की तरह महिलाओं ने भी काफी योगदान दिया है। ऋग्वेद में चौबीस और अथर्ववेद में पाँच महिलाओं का योगदान है। यमी, अपाला, उर्वशी, इन्द्राणी और वागाम्भृणी वैदिककालीन ऋषिकाएँ भी मंत्रों की दर्शिकाएँ थीं।

9. संस्कृतसाहित्य में दक्षिण भारतीय महिलाओं के योगदानों का वर्णन करें ।

उत्तर -चालुक्य वंश की महारानी विजयभट्टारिका ने विजयाङ्का की रचना कर लौकिक संस्कृतसाहित्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। लगभग चालीस दक्षिण भारतीय महिलाओं ने एक सौ पचास संस्कृत काव्यों की रचना की है। इन 8. ‘भारती महिलाओं में गंगादेवी, तिरुमलाम्बा, शीलाभट्टारिका, देवकुमारिका, रामभद्राम्बा आदि प्रमुख हैं। इनकी रचनाएँ पद्य में हैं।

10. संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय के लेखिकाओं के योगदानों की चर्चा करें।

उत्तर -संस्कृतसाहित्य में आधुनिक समय की लेखिकाओं में पण्डिता क्षमाराव अति प्रसिद्ध हैं। उन्होंने शंकरचरितम्, सत्याग्रहगीता, मीरालहरी, कथामुक्तावली, विचित्र-परिषदयात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य-पद्य ग्रन्थों की रचना की। वर्तमानकाल में लेखनरत कवत्रियों में पुष्पा दीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि प्रतिदिन संस्कृतसाहित्य को समृद्ध कर रही हैं।

11. ‘अलसकथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि आलसी पुरुषों को किसने और क्यों निकाला ?
अथवा, चारों आलसी पुरुष आग से किस प्रकार बचना चाहते थे ?

उत्तर-चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर आग पर जल, वस्त्र या कंबल डाल दे, जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ। चूँकि आलसी व्यक्ति आग से बचने के लिए भी नहीं भाग सके इसलिए नियोगी पुरुष ने उनकी प्राणरक्षा के लिए उन्हें घर से बाहर किया।

12. अलसकथा का सारांश लिखें।

Class 10th Sanskrit Subjective Question : उत्तर-मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनाथों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोक बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गए। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त्त लोग भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक धन-व्यय देखकर शाला चलाने वाले लोगों ने विचार किया कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं यह हमलोगों की गलती है। अतः, उन आलसियों का परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसीशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर यथावत बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई अग्नि की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे देव या दयावान लोगों की. दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहले से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।

13 किनकी क्या-क्या गतियाँ हैं? पठित पाठ के आधार पर स्पष्टकरें।

उत्तर-गति को यहाँ विशेष रूप से विश्लेषित किया गया है। स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की गतियाँ अलग-अलग हैं। स्त्रियों की गति पति हैं, बच्चों की गति माँ है तथा आलसियों की गति कारुणिकता (दयालुता) है। अर्थात् स्त्रियों की जीवनभंगिमा उसके पति पर निर्भर करती है। बच्चों की जीवनवृत्ति उसकी माँ ही होती है। आलसियों की जीवनवृत्ति दयालुओं पर ही निर्भर होती है।

14. अलसकथा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर-यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ से संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।

15. अलसकथा का वर्णय विषय क्या है ?

उत्तर-विद्यापति द्वारा रचित कथाग्रंथ ‘पुरुषपरीक्षा’ नामक पुस्तक से ली गयी। ‘अलसकथा’ मानव महत्त्व एवं दोषों के निराकरण की शिक्षा देती है। आलसियों को दान देने की इच्छा रखनेवाले वीरेश्वर ने यह जानने की उत्कंठा प्रकट की थी कि आलसी जीवन जीने की कला का कैसे निर्वहन करते हैं। इष्ट लाभ के लिए मेहनती भी आलसी का रूप लेकर पहुँचने लगते हैं। उनकी परीक्षा के लिए दानगृह में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आलसी भागने के क्रम में गीले कपड़े से ढकने, घर में आग लगी है, यहाँ कोई धार्मिक नहीं है आदि की चर्चा करते हैं। आलसी केवल करुणा के पात्र होते हैं।

16 जन्मपूर्व व मरणोपरांत कौन-कौन से संस्कार होते हैं?

उत्तर- जन्म पूर्व के संस्कार हैं-गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन। अंत्येष्टि मरणोपरांत संस्कार हैं।

17 . संस्कार का मौलिक अर्थ क्या है?

उत्तर-संस्कार का मौलिक अर्थ है जो व्यवस्था हमें समुचित रूप से व्यवस्थित करे।

18. शैशव संस्कारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर- भारतीय संस्कार के अनुसार शैशवकाल के पाँच संस्कार हैं- जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म और कर्णबेध।

19 . सभी संस्कारों के नाम लिखें। अथवा, ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ के आधार स्पष्ट करें कि संस्कार कितने हैं तथा उनके नाम क्या हैं ?
अथवा, संस्कार कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन ?

उत्तर- संस्कार कुल सोलह हैं। जन्म पूर्व तीन-गर्भाधान, पुंसवन और सीमन्तोनयन संस्कार होते हैं। शैशवावस्था में छः संस्कार होते हैं-जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म और कर्णबेध। पाँच शैक्षणिक संस्कार हैं-अक्षरारम्भ, उपनयन, वेदारम्भ, केशान्त और समावर्तन । यौवनावस्था में विवाह संस्कार होता है तथा व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका अन्त्येष्टि संस्कार किया जाता है।

20 . शैक्षणिक संस्कार कौन-कौन से हैं?

उत्तर-शैक्षणिक संस्कार में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुंडन संस्कार आदि होते हैं।

21 . केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है, क्यों?

उत्तर-केशान्त संस्कार में गुरु के घर में ही शिष्य का प्रथम क्षौरकर्म (हजामत) होता था। इसमें गोदान मुख्य कर्म था। अतः साहित्यिक ग्रंथों में इसका दूसरा नाम गोदान संस्कार भी प्राप्त होता है।

22. विवाह संस्कार का वर्णन अपने शब्दों में करें।
अथवा, विवाह संस्कार में कौन-कौन से मुख्य कार्य किये जाते हैं?
ल अथवा, विवाहसंस्कार का वर्णन करें।

उत्तर -विवाह संस्कार से ही लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं। उनमें वाग्दान, मण्डप-निर्माण, वधू के घर में वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सिन्दूरक्षन इत्यादि कई कर्मकांड शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में समान रूप से विवाहसंस्कार का आयोजन होता है।

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